पहेलियाँ भी हमारे लोक साहित्य का एक अभिन्न अंग हैं, बहुत सी पहेलियाँ कहावतों के रूप में भी प्रयोग होती हैं, पुरानी पहेलियाँ जिन चीजों पर बनाई गई हैं उन में से बहुत सी चीजें आजकल की पीढ़ियों ने देखी ही नहीं हैं ( जैसे कुम्हार का चाक, चरखा, डोली, फूट नाम का फल, चूल्हा आदि) इसलिए उन को इन पहेलियों में रूचि उत्पन्न नहीं होती. लेकिन कहावतों की भांति इन पहेलियों को भी संरक्षित किया जाना आवश्यक है. पहेलियों में पुल्लिंग चीजों को नर और स्त्रीलिंग चीजों को नारी या तिरिया कहा गया है ||
एक नार जो औषध खाए, जिस पर थूके वह मर जाए, जब जब नर उसे छाती लगाए, तब तब वो काना हो जाए।
उत्तर- बन्दूक (निशाना लगाते समय एक आँख बंद कर लेते है)
एक नार दो सींगो से, नित उठ खेले धींगों से, जाके द्वार जाय के अड़े, मानुस लिये बिना नहिं टले|
उत्तर - डोली
एक नार ने अचरज किया, सांप मार पिंजरे में दिया, ज्यों ज्यों सांप ताल को खाए, सूखे ताल सांप मर जाए |
उत्तर – दिया और बत्ती
एक नार नौरंगी चंगी छै नाड़े लटकावे लोगों के संग जुआ खेले फिर भी नार कहावे !
उत्तर – तराजू
एक नार पिया को भानी, तन बाको सगरा ज्यों पानी, आब रहे पर पानी नांही, पिया को राखे हिरदय मांही, जब पी को वह मुख दिखलावे, आपहि पी जैसी हो जावे
उत्तर- आईना
एक नार बहुरंगी, घर से निकले नंगी, उस नारी का इहै सुभाव, जिस को चूमे कर दे घाव !
उत्तर – तलवार
एक पड़ी, एक खड़ी, एक छमाछम नाच रही !
उत्तर – कचौड़ी
एक पहेली सदा नवेली, लगा अक्ल में फंदा, जिन्दे में से मुर्दा निकले, मुर्दे में से जिंदा !
उत्तर – मुर्गी और अंडा
एक पुरुख और नौलख नारी, सेज चढ़ी वह तिरिया सारी, जले पुरुख देखे संसार, इन तिरियों का यही सिंगार
उत्तर – कुम्हार का आवा, ईंट का भट्टा
एक पुरुख ने ऐसी करी, खूंटी ऊपर खेती करी, खेती बारी दई जलाय, वाई के ऊपर बैठा खाय.
उत्तर-कुम्हार
एक पुरुख बहुत गुन भरा, लेटा जागै सोवे खड़ा, उलटा होकर डाले बेल, यह देखो करता का खेल.
उत्तर- चरखा
एक पुरुष का अचरज लेखा, मोती फलते आँखों देखा, जहाँ से उपजे वहाँ समाय, जो फल गिरे सो जल-जल जाए।
उत्तर- फव्वारा
एक पेड़ रेती में होवे, बिन पानी के हरा रहे, पानी दीजे वो जल जाए, आँख लगे अंधा हो जाए.
उत्तर – आक
एक पेड़ सरकउआ, जिस पे चील बैठे न कउआ.
उत्तर – धुआं
एक बुढ़िया शैतान की खाला, सिर सफेद औ मुहँ है काला, लौंडे घेरे हैं वह नार, रखते हैं सब उससे प्यार, उछले कूदे नाचे वो, आग लगे उस बुढ़भस को
उतर - आक की बुढ़िया
एक मंदिर के सहस्त्र दर, हर दर में तिरिया का घर, बीच में वाके अमृत ताल, बूझ पहेली मेरे लाल
उतर - मधुमक्खी का छत्ता
एक महल के दो दरवाजे, निकले काजी धैं दे मारे
उत्तर – नाक से निकली रैंट
एक राजा की अनोखी रानी, नीचे से वह पीवे पानी
उत्तर- दिए की बत्ती
एक शहर जादू का देखा, जिसे देख कर हुए परेखा, ईंटें हैं पर नहीं मकान, राजा रानी नहीं दीवान, इक्के तांगे नहीं कोचवान, बिना तमोली बिकते पान, सारा शहर लगे सुनसान, जिसको देखो है बेजान
उत्तर – ताश
एक सींग की ऐसी गाय, जितना दो उतना हीं खाए, खाते खाते गाना गाए, पेट नहीं उसका भर पाए
उत्तर – आटा चक्की
ओइ की रोटी ओइ की दार, ओइ की टटिया लगी दुआर.
उत्तर – चना
कटोरे में कटोरा, बेटा बाप से भी गोरा
उत्तर – नारियल
काजल की कजलौटी उधो, पेड़न का सिंगार, हरी डाल पर मैना बैठी, है कोई बूझनहार।
उत्तर- जामुन
काला घोड़ा, सफेद सवारी, एक उतरा तो दूजे की बारी.
उत्तर – तवा और रोटी
काली काली मां लाल लाल बच्चे, जहाँ जाए माँ वहाँ जाएं बच्चे
उत्तर – पुरानी वाली रेलगाड़ी
काली हूँ मैं काली हूँ, काले वन में रहती हूँ, लाल पानी पीती हूं
उत्तर – जूँ
खेत में उपजे सब कोई खाय, घर में उपजे घर खा जाय
उत्तर – फूट नाम का फल
गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग, ग्यारह देवर छोड़ कर, चली जेठ के संग
उत्तर- अरहर की दाल
घिस पांव घिस पांव, तीन सर दस पांव
उत्तर – बैलगाड़ी और चालक
चाची के दो कान चचा के कानहिं नाए, चाची चतुर सुजान चचा कुछ जानहिं नाए
उत्तर – कढ़ाई और तवा
चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़-हाड़ में वाके छेद, मोहि अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे
उत्तर – पिंजड़ा
चार अंगुल का पेड़, सवा मन का पत्ता, फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा
उत्तर- कुम्हार की चाक
चार खड़े चार पड़े एक एक मुंह में दो दो अड़े
उत्तर – खाट, चारपाई
चार नरम चार गरम चार बालूशाही
उत्तर – चार ऋतुएं
चोर जीव निर्जीव पहरुआ, चोरी हो गई चीज, चोर भीतर न आया.
उत्तर – सीता हरण
छोटा सा फकीर जिसके पेट में लकीर
उत्तर – गेहूँ
छोटी सी तिरिया बड़ी सी पूंछ, जहां जाए तिरिया वहां जाए पूंछ
उत्तर – सुई धागा
जब काटो तब ही बढ़े, बिन काटे कुम्हिलाय, ऐसी अद्भूत नार का, अंत न पायो जाय
उत्तर- दिये की बाती
जरा सी हल्दी, सारे घर में मल दी
उत्तर – दीपक का प्रकाश
जल कर उपजे जल में रहे, आँखों देखा खुसरो कहें।
उत्तर- काजल
जल से तरुवर उपजा एक, पात नहीं पर डाल अनेक, इस तरुवर की शीतल छाया, नीचे एक न बैठन पाया।
उत्तर- फव्वारा
जा घर लाल बलैया जाय, ताके घर में दुंद मचाय, लाखन मन पानी पी जाए, धरा ढका सब घर का खाय
उत्तर- आग
ठंडा है तो काला, गरम है तो लाल, फेंको तो सफ़ेद, बोलो क्या है भेद
उत्तर – कोयला
तन्नक सी मन्नक सी हल्दी जैसी गांठ, चटाक चूमा ले गई, महा दुख दे गई
उत्तर – मधुमक्खी
तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, आगे तीतर पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर?
उत्तर – तीन
तीन पांव के पोंगा पंडित, रोज नहाने जाते हैं, दाल भात का मरम न जानें, कच्ची रोटी खाते हैं
उत्तर – चकला
थल में पकड़े पैर तुम्हारे, जल में पकड़े हाथ, मुर्दा होकर भी रहता है, हर मानुस के साथ
उत्तर – जूता
दिन को सोये, रात को रोये, सब की खातिर, जीवन खोए
उत्तर – मोमबत्ती
दो किसान लड़ते जाएँ, खेती उन की बढती जाए.
उत्तर – ऊन और सलाइयाँ
दो दौड़े, पांच ने उठाया, बत्तीस ने खाया, मजा एक को आया
उत्तर – दो पैर, पाँच उंगलियाँ, बत्तीस दांत और एक जीभ
दो पग चलें चार लटकाएं, तीन सीस दो नैना
उत्तर – श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को ले जाते हुए
दो मुंह छोटे एक मुँह बड़ा, आधा मानुष लीले खड़ा, बीचो बीच लगाए फांसी, नाम बतावत आवे हांसी.
उत्तर – पजामा
नर से पैदा होवे नार, हर कोई उससे राखे प्यार, सारी दुनिया उसको खावे, खुसरो पेट में वह न जावे।
उत्तर- धूप
नारि जिनके संग विराजे लोचन जिनके तीन, जता जूट में लिपट गगन में रहते तप में लीन, सिद्ध हुए तब नर सेवा हित पाँव धरा पर धरते, सर तुड़वाते क्रोध न कर बदले में मेवा देते
उत्तर – नारियल
पट गोल गोल, पट स्याह स्याह, पट तौबा तौबा
उत्तर – काली मिर्च
पवन चलत वह देह बढ़ावे, जल पीवे वह जान गंवावे, है वह प्यारी सुन्दर नार, नार नहीं पर है वह नार
उत्तर – आग. (अरबी में आग को नार कहते हैं).
पांच पोते पोतेंगे, बत्तीस लोटे लोटेंगे, अंटो बाई नाचेंगी, घंटो बाबा फूलेंगे.
उत्तर – उंगलियाँ, दांत, जीभ और पेट
पानी में निस दिन रहे, जाके हाड़ न मांस, काम करे तलवार, का फिर पानी में बास
उत्तर – कुम्हार का डोरा
पानी से निकला रुख एक, पात नहीं पर डाल अनेक, अजब पेड़ की ठंडी छाया, नीचे कोई बैठ न पाया
उत्तर – फव्वारा
पीली तलैया पीले अंडे, बताओ तो बताओ नहीं तो पड़ेंगे डंडे
उत्तर – कढ़ी
बाँस बरेली से एक नारी, लाए जुल्मी मार कटारी, पी कुछ उसके कान में फूँके, वो भी पी के साथ में कूके
उत्तर- बाँसुरी
बात की बात ठठोली की ठठोली, मरद की बाँह औरत ने खोली।
उत्तर- ताला चाभी
बाबा बाबा बाजार जाना, खाने के लिए हलवा लाना, पीने के लिए शरबत लाना, चाबने के लिए चबेना लाना, बकरी के लिए चारा लाना. बाबा एक ही चीज लाए जिससे सब की फरमाइशें पूरी हो गईं. बताओ क्या
उत्तर – तरबूज
बाबा बैठे जा घर में, पांव पसारे बा घर में
उत्तर – दीपक और उस का प्रकाश
भांत-भांत की दीखें नारी, नीर भरी है धौरी कारी, ऊपर बसे और जग धावे, रच्छा करे जब नीर बहावे
उत्तर- बदली
मखमल की डिबिया में सी सी के बीज. मिर्च
माटी का मटीलना लोहे का पिहान, ता पे चढ़ बैठा गुदगुदिया मसान
उत्तर – चूल्हे पर तवा, तवे पर रोटी
मिला रहे तो नर रहे, अलग होय तो नार, सोने का सा रंग है, कर लो चतुर विचार
उत्तर- चना
मीठी-मीठी बात बनावे, ऐसा पुरुष वह किसको भावे, बूढा बाला जो कोई आए, उसके आगे सीस नवाए।
उत्तर- नाई
मैं हरी, मेरे बच्चे काले, मुझे छोड़ मेरे बच्चे खा ले
उत्तर – इलायची
मोटा पतला सब को भावे, दो मीठों का नाम धरावे
उत्तर- शक्करकंद
राजा रानी सुनो कहानी, एक घड़े में दो रंग का पानी
उत्तर – अंडा
रात समय एक सूहा आया, फूलों-पातों सबको भाया, आग दिए वह होय रूख, पानी दिए वह जाए सूख
उत्तर- अनार आतिशबाजी
राम की बैन भरत की सारी, भयो न ब्याह रही न क्वारी
उत्तर – अयोध्या की गद्दी
लाला जी के पेट में ललाइन नाचें
उत्तर – ताला चाबी
लोहे की हैं दो तलवारें, खूब लड़ें पर साथ रहें
उत्तर – कैंची
वर मांगन वर पे गई वर पायो तत्काल, वर पाकर बेवर हुई पंडित करो विचार
उत्तर – कैकेयी
श्याम बरन औ पीला टीका, मुरलीधर ना होए, बिन मुरली वह नाद करत है, बिरला बूझे कोय
उत्तर- भौंरा
सफेद मुर्गी, हरी पूँछ, तुझे ना आए तो काले से पूछ
उत्तर – मूली
सब कोई चले गए, बुढ़ऊ लटक गए
उत्तर – ताला
सर पर आग बदन में पानी, चढ़ चौकी पर बैठी रानी
उत्तर – हुक्का
सर पर जाली, पेट है खाली, पसली देख एक-एक निराली
उत्तर- मोढ़ा, मूढा
सात गांठ की रस्सी, गांठ गांठ में रस, इसका उत्तर जो बतलाए, रूपए मिलेंगे दस
उत्तर – जलेबी
सामने आय, कर दे दो, मारा जाय, न जख्मी हो, अर्थ जो उसका बुझेगा, मुँह देखो तो सूझेगा
उत्तर- आईना
सुंदर वाकी छाँव है, औ सुंदर वाको रूप, खुला रहे औ नहिं कुम्ह्लावे, जों-जों लागे धूप
उत्तर- छाता
स्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागै प्यारी, जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले
उत्तर – भौं
स्याम बरन सोने का टीका, बिन मारे ही रोए
उत्तर – भंवरा
हम माँ बेटी तुम माँ बेटी चली बाग़ को जाएँ, तीन नारंगी तोड़ कर पूरी पूरी खाएँ
उत्तर – एक महिला, एक उसकी बेटी और एक बेटी की बेटी.
हरा आटा लाल पराठा
उत्तर – मेहँदी
हरी थी मन भरी थी नौ सौ मोती जड़ी थी, राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खड़ी थी
उत्तर – मक्का
हाथ लिए दस दस को काटे, जब बिगड़े तो पत्थर चाटे. उत्तर – नहन्ना, नहरना
है वह ऐसी सुंदर नार, नार नहीं पर वह है नार, दूर से सब को छवि दिखलावे, हाथ किसी के कबहु न आवे
उत्तर-आकाशीय बिजली
अमीर खुसरो ने कुछ ऐसी विशेष पहेलियाँ बनाई हैं जिन में पहेली में ही उत्तर छिपा होता है. इन पहेलियों का भी आनंद लीजिये –
एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव, ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव
उत्तर – मैंना
एक नार तरुवर से उतरी माँ सो जनम न पायो, बाप को नाम जो वासे पुछ्यों, आधो नांव बतायो, आधौ नाव बताओ खुसरो, कौन देश की बोली, बाको नाम जो पुछ्यों मैने, अपनहिं नाम नि बोली
उत्तर- निंबोली
एक नार वह दांत दंतीली, पतली दुबली छैल छबीली, जब वा तिरियहिं लागै भूख, सूखे हरे चबावे रुख, जो बताय बाकी बलिहारी, खुसरो कहें इधर को आ री
उत्तर- आरी
एक परखिहें सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत, फिक्र पहेली पाई ना, बूझन लागा आई ना
उत्तर—आईना
गोल मटोल और छोटा-मोटा, खडा भी लोटे पड़ा भी लोटा, बैठा तो भी कहे हैं लोटा, खुसरो कहे समझ का टोटा
उत्तर – लोटा
घूम घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खड़ी, आठ हात हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी, सब कोई उसकी चाह करे है, मुसलमान हिन्दू छतरी, खुसरो ने यह कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी
उत्तर – छतरी
चलती जल में बसती गाँव, बस्ती में ना बाका ठांव, खुसरो ने दिया बाका नांव, बूझ अरथ नहिं छोड़ों गाँव
उत्तर- नाव
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया, खुसरो कह दिया उसका नाँव, अर्थ कहो नहीं छोड़ो गाँव
उत्तर – दिया
बीसों का सर काट लिया, ना मारा ना ख़ून किया
उत्तर- नाखून
वन में काटा, वन में छांटा, वन में हुआ श्रृंगार, एक बार जल में उतरी, फिर न देखा घर बार
उत्तर – नौका
श्याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नारी, दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री
उत्तर – आरी
सावन भादों खूब चलत है, माघ पूस में थोरी, अमीर खुसरो यूँ कहें, तू बूझ पहेली मोरी
उत्तर- मोरी (नाली)
हरी-हरी मछली के हरे-हरे अंडे, जल्दी से बताओ नहीं तो पड़ेंगे डंडे
उत्तर – मटर
हाड़ की देही ऊजल रंग, लिपटा रहे नारी के संग, चोरी की ना खून किया, वाका सर क्यों काट लिया
उत्तर – नाखून
हाथ से टूटी, धूप में पड़ी, सूख साख के हुई बड़ी
उत्तर- बड़ी
अमीर खुसरो की कुछ विशेष पहेलियाँ जिसमे दो लोग एक जैसी बातें करते हैं!!
घोडा अडा क्यों? पान सडा क्यों ? – गुरु जी फेरा न था
मुसाफिर प्यासा क्यों? गदहा उदास क्यों ? – गुरु जी लोटा न था
गाड़ी खड़ी उजाड़ में, कांटो लागे पाँय, गोरी सूखे सेज में, कह चेला किन दाए – गुरुजी जोड़ी न थी.
अमीर खुसरो की कुछ विशेष पहेलियाँ ऐसी होती हैं जिन में नायिका किसी चीज का वर्णन इस प्रकार करती है जैसे :-
अपने पति के बारे में बात कर रही हो. जब उस की सहेली पूछती है – क्यों सखि साजन? तो वह कहती है – नहिं सखि फलाँ चीज़. इन पहेलियों को मुकरियाँ कहते हैं. जैसे –
रंग और रस का फाग मचाया, आप भिजे औ मोहि भिजाया,
वाको कौन न चाहे नेह, ऐ सखी साजन ना सखी मेह.
नीला कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा,
देखत घटा अलापे जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर.
धमक चढ़े सुध-बुध बिसरावै, दाबे जांघ बहुत सुख पावै,
अति बलवंत दिनन को थोड़ा, ऐ सखी साजन न सखी घोड़ा.
टट्टी तोड़ के घर में आया, अरतन-बर्तन सब सरकाया,
खा गया पी गया दे गया बुत्ता, ऐ सखी साजन ऐ सखी कुत्ता.
सेज पड़ी मेरी आँखों आया, नींद मेंहि मोहि मजा दिखाया,
किससे कहूँ मजा मैं अपना, ऐ सखी साजन ना सखी सपना.
सगरी रैन मोहे संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा,
वाके बिछुड़त फाटे हिया, ऐ सखी साजन ना सखी दिया.
शोभा सदा बढ़ावन हारा, आँखिन से छिन होत न न्यारा,
आठ पहर मेरो मनरंजन, ऐ सखी साजन ना सखी अंजन.
बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से लगा मुहँ रस को पियावे,
वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखी साजन? न सखी आम.
वाको रगड़ा नीको लागे, चढ़ जोबन पर मजा दिखावे,
उतरत मुँह का फीका रंग, ऐ सखी साजन ना सखी भंग.
वा बिन मोको चैन न आवे, वह मेरी तिस आन बुझावे,
है वह सब गुण बारहबानी, ऐ सखी साजन ना सखी पानी.
जब माँगू तब जल भरि लावे, मेरे मन की तपन बुझावे,
मन का भारी तन का छोटा, ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा.
मुख मेरा चूमत दिन रात, होंठो लगत कहत नहीं बात,
जासे मेरी जगत में पत, ऐ सखि साजन ना सखि नथ.
रात समय घर मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे,
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखि साजन? ना सखि तारा.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत, पाँव से मिट्टी लगन न देत,
पाँव का चूमा लेत निपूता, ऐ सखि साजन? ना सखि जूता.
ऊंची अटारी पलंग बिछायो, मैं सोई मेरे सिर पर आयो,
खुल गई अंखियां भयो आनंदा, ऐ सखि साजन? ना सखि चंदा.
वो आवै तो शादी होय, उस बिन दूजा और न कोय,
मीठे लागें वा के बोल, ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे, ना जागूँ तो काटे खावे,
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की, ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी.
अति सुरंग है रंग रंगीलो, है गुणवंत बहुत चटकीलो,
राम भजन बिन कभी न सोता, ऐ सखि साजन? ना सखि तोता.
आप हिले और मोहे हिलाए, वा का हिलना मोए मन भाए,
हिल हिल के वो हुआ निसंखा, ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा.
देखन में वह गाँठ-गठीला, चाखन में वह अधिक रसीला,
मुख चूमू तो रस का भाँडा, ऐ सखी साजन न सखी गांडा.
दुर दुर करूँ तो भागा जाए, छन बाहर छन आँगन आये,
देहली छोड़ कहीं नहीं सुत्ता, ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता.
मेरे घर में दीनी सेंध, लुढ़कत आवे जैसे गेंद,
वाके आए पड़त है सोर, ऐ सखी साजन ना सखी चोर.
जोर जोर ताकत दिखलावे, हुमुकि हुमकि मो पे चढ़ि आवे,
पाँव पेट में दे दे मारा, ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा.
लौंडी भेज उसे बुलवाया, नंगी होकर बदन लगाया,
हमसे उससे हो गया मेल, ऐ सखी साजन ना सखी तेल.
कसके छाती पकडे रहे, मुँह से बोले न बात कहे,
ऐसा है कमिनी का रंगिया, ऐ सखी साजन ना सखी अँगिया.
आँख चलावे भौं मटकावे, नाच-कूद के खेल दिखावे,
मन में आवे ले जाऊं अन्दर, ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर.
बन-ठन के सिंगार करे, धर मुँह पर मुँह प्यार करे,
प्यार से मो पै देत है जान, ऐ सखी साजन ना सखी पान.
वा बिन मोको चैन न आवे, वह मेरी तिस आन बुझावे,
है वह सब गुण बारहबानी, ऐ सखी साजन ना सखी पानी.
अति सुंदर जग चाहे जाको, मैं भी देख भुलानी वाको,
देख रूप माया जो टोना, ऐ सखी साजन ना सखी सोना.
राह चलत मोरा अंचरा गहे, मेरी सुने न अपनी कहे,
ना कुछ मोसे झगडा- टांटा, ऐ सखी साजन ना सखी कांटा.
उमड़-घुमड़ कर वह जो आया, अन्दर मैने पलंग बिछाया,
मेरा वाका लागा नेह, ऐ सखि साजन ना सखि मेह.
हिलत-झूमत वो नीको लागै, अपने ऊपर मोहि चढ़ावै,
मैं वाकी वह मेरा साथी, ऐ सखी साजन ना सखी हाथी.
जीवन सब जग जासौ कहै, वा बिनु नेक न धीरज रहै,
हरै छिनक में हिय की पीर, ऐ सखी साजन ना सखी नीर.
अपनी यादों की पिटारी से कुछ ऐसी पहेलियाँ भी लेकर आया हू, ये वो पहेलियाँ है ....जब आज भी मैं याद करता हूँ तो....ऐसा लगता है जैसे....हम बच्चे नानी के पास बैठे..... मैं बताऊँ...मैं बताऊँ... का शोर मचा रहे हों .... और नानी कहती हो....' अरे भई....जरा दम तो लो .....पहले पहेली कहने तो दो' और पहेलियों के सवाल जवाब का सिलसिला आगे बढ़ता चला जाता है और उनके पास बैठे सभी बच्चे और बड़े इसका आनंद उठाते हैं, और सच में दादी की कहानियों के जैसे ही उनकी पहेलियां भी बहुत ही मजेदार होती थी ||
कुछ पहेलियों के उतर आप comment में बताएं :-
1. तीन अक्षर का देस हूँ
जानते लोग लाख करोड़
पीठ काटो बन जाऊँ
पाँच उँगली का जोड़...................... (पंजाब)
2. वो चीज़ जो गीता में नहीं......................... ( झूठ)
3. वो गई , ये आई....................................(नज़र)
4. आई थी, मगर देखी नहीं.....................(मौत/ नींद)
5. धूप में पैदा हुआ
छाया मिली , मुरझा गया.......................(पसीना)
6. तीतर के दो आगे तीतर
तीतर के दो पीछे तीतर
बोलो कितने तीतर........................... (तीन)
7. वो चीज़ कौन सी
जिसका है आकार
मगर नहीं है भार ............................ (अक्षर)
8. एक कटोरी में
दो रंग का पानी (अंडा)
9. जिसने खरीदा
उस ने नहीं किया प्रयोग
जिस ने किया प्रयोग
उस देखा नहीं ........................... (कफ़न)
10. मैं गोल-गोल
मैं पीला-पीला
दूसरे की थाली में
मैं लगता बड़ा ........................... (लड्डू)
11. एक चीज़ है ऐसी
देखे चोर....
मगर चुरा न सके ........................ (विद्या - ज्ञान)
12. हम माँ बेटी
तुम माँ बेटी
चलो बाग में चलें
तीन आम तोड़ कर
पूरा-पूरा खाएँ .......................(नानी, माँ और बेटी)
13 .सफेद धरती काले छोले
हाथों बोएँ, मुँह से बोलें
........................ (कॉपी पर लिखे गये....' अक्षर')
14 . ऐसा बताओ कौन शैतान
नाक पर बैठे पकड़े कान ...................( ऐनक)
15. स्थिर है मगर
दिन रात चले...............................(सड़क)
16. बिन हाथों के
बिन पैरों के
घूमें इधर- उधर.......................... (अख़बार)
17 . जैसे जैसे मुझे तलाशो
दिल की अड़चन खोलो
प्यार मेरे से पायोगे
रुह की भूख मिटाओगे........................ (किताब)
18. छोटा सा सिपाही
उस की वरदी
खींच कर उतारी.............................. ( केला)
19. एक चीज़ आई ऐसी
सुबह चार टांगों पर
दुपहर को दो पर
शाम को तीन पर
.....................(बचपन...जवां...और बुढ़ापा)
20. जिस के लगे
उस को मारे
है वो हत्यारा
न वो फाँसी लगे
न जाए जेल
लगता सब को प्यारा .............................. (चाकू)
21. छोटी जी पिद्दणी,
पिद्द पिद्द कर दी ।
सारे बज़ार दी,
लिद कट्ठी कर दी॥........................... ( झाड़ू )
22. हरी सी
भरी सी
राजे दे
दरबार विच्च
दुपट्टा पा के
खड़ी सी। ..................... (मकई का भुट्टा)
23. आ से
ओ से!......................... (नज़र)
24 . उत्ते मैँ हरी सी
हेठ लाल हां
अमीर ते गरीब
सब दे नाळ हां। ..................... (हरी मिर्च)
25. देखो मेरा कमाल
लाओ तां हरी
ल्हाओ तां लाल ।........................(मेहँदी)
26 वेखो मेरी तक़दीर।
मेरे टिढ जन्मों लकीर।
(कणक का दाना)
27. बारां जुवाक
ती पौते
प्यो दा नां
दस खोते !
.............................( साल, महीना, दिन)
.
28. पिच्छों खांवां
अग्गों कढां ।
29. 32 फौजी
कल्ली नार
कर दी वार
नां मन्ने हार।
..................................(जीभ और दाँत)
30. दुम्म से
पानी पी कर
मुख से
आग उगलती हूं!
31. खड़ी भी चलती
पड़ी भी चलती
जड़ी भी चलती
बंधी भी चलती
बिन पग भी चलती।
32. पहले मैं खाता
फिर
सब को खिलाता!
33. ऊगता हूं
बढ़ता हूं
पर
लगता नहीँ पत्ता।
34. नाक पर बैठता
कान पकड़ता।...................... (ऐनक)
35. गोभी मटर
टमाटर प्याज
सब संग यारी
अपने जैसी
कौन तरकारी?
..................हरदीप कौर संधु
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